Q. डी ० एन ० ए ० प्रतिकृति का प्रजनन में क्या महत्त्व है?
उत्तर- प्रजनन की मूल घटना है डी ० एन ० ए ० की दो प्रतिकृतियाँ तैयार करना । इसके लिए कोशिकाएँ रासायनिक अभिक्रियाएँ करती हैं जिससे डी ० एन ० ए ० की दो प्रतिकृतियाँ बन जाती हैं । इन प्रतिकृतियों को अलग होने के लिए एक अलग कोशिकीय संरचना की आवश्यकता होती है । डी ० एन ० ए ० की दोनों प्रतिकृतियाँ अलग होकर दो कोशिकाओं का निर्माण करती हैं । इस प्रकार प्रजनन में दो कोशिकाओं को बनाने के लिए डी ० एन ० ए ० प्रतिकृति आवश्यक है ।
Q. जीवों में विभिन्नता स्पीशीज़ के लिए तो लाभदायक है परंतु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है , क्यों ?
उत्तर- जीवों में विभिन्नताओं की किसी जीव के अस्तित्व के लिए आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसके जीवित रहने पर कुछ विभिन्नताओं का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता । वह समानता के आधार पर अधिक अनुकूल होता है । लेकिन डी ० एन ० ए ० की दोनों प्रतिकृतियाँ बिल्कुल समान नहीं होतीं उनमें कुछ – न – कुछ विभिन्नताएँ अवश्य होती हैं जो धीरे – धीरे गहरी होती जाती हैं । जनन में होने वाली ये विभिन्नताएँ अन्ततः नई स्पीशीज़ के विकास में योगदान देती हैं तथा जैव विकास का आधार बनती हैं । अतः विभिन्नताएँ स्पीशीज़ के उद्भव के लिए आवश्यक हैं लेकिन जीव के जीवित रहने के लिए इनकी कोई आवश्यकता नहीं है ।
Q. द्विखंडन बहुखंडन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर- द्विखंडन इस विधि द्वारा एककोशिकीय जीव दो भागों में विभक्त होता है और प्रत्येक भाग एक नए जीव में विकसित होता है ; जैसे – अमीबा । बहुखंडन इस विधि में एककोशिकीय जीव अनेक भागों में विभक्त होता है तथा प्रत्येक भाग एक नए जीव में विकसित होता है ; जैसे मलेरिया परजीवी ( प्लैज़्मोडियम ) ।
Q. बीजाणु द्वारा जनन से जीव किस प्रकार लाभान्वित है?
उत्तर- बहुत से सरल बहुकोशिकीय जीवों के वृन्त बीजाणुधानी कहते हैं । बीजाणुधानी में बहुत से बीजाणु प्रकार एक बीजाणुधानी से एक बड़ी संख्या में नए जीव उत्पन्न हो लाभदायक होता है जिनमें जनन बीजाणु द्वारा होता है ।
Q. कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है ?
उत्तर- कायिक प्रवर्धन केवल ऐसे पौधों में ही संभव है जिनके जड , तना या पत्तियों में नए पौधों को उगाने की क्षमता होती है । कुछ पौधों में बीज नहीं होते , ऐसे पौधों को केवल कायिक प्रवर्धन द्वारा ही उगाया जा सकता है । कायिक प्रवर्धन बीजरहित पौधों को उगाना संभव बनाता है । केला , नारंगी , गुलाब , जासमीन व गन्ने में बीज बनने की क्षमता कम है या बिल्कुल नहीं है अतः ऐसे पौधे कायिक प्रवर्धन द्वारा ही उगाये जा सकते
Q. डी ० एन ० ए ० की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक क्यों?
उत्तर- डी ० एन ० ए ० की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक है । यह जनन के लिए एक मूल घटना है । डी ० एन ० ए ० की दो प्रतिकृतियों से ही जनक कोशिका की दो कोशिकाएँ बनती हैं । ये दोनों प्रतिकृतियाँ अलग होना आवश्यक हैं तभी जनन हो सकता है । इसके लिए एक अलग से कोशिकीय संरचना आवश्यक है । एक प्रतिकृति नई संरचना में तथा एक मूल कोशिका में रह जाती है । इस प्रकार दो प्रतिकृतियाँ दो नई कोशिकाएँ बनाने में सहायता करती हैं ; और जनन होता है ।
Q. परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर- परागण परागकणों के परागकोष से वर्तिकाग्र तक पहुँचने की क्रिया को परागण क्रिया कहते हैं । इस प्रक्रिया में किसी प्रकार की दो कोशिकाओं में संलयन नहीं होता है । यह निषेचन से पहले की क्रिया है । निषेचन निषेचन में नर व मादा युग्मकों का संलयन होता है तथा युग्मनज बनता है । यह परागण के बाद की क्रिया है ।
Q. शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि की क्या भूमिका है ?
उत्तर- नर जनन तंत्र में कुछ ग्रंथियाँ ; जैसे- शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथियाँ होती हैं । इन ग्रंथियों के स्राव शुक्राणु के साथ मिलते हैं । इस प्रकार शुक्राणु एक द्रव में आ जाते हैं । यह द्रव शुक्राणुओं के स्थानांतरण को आसान बनाता है । यह द्रव शुक्राणुओं को पोषण भी प्रदान करता है ।
Q. यौवनारंभ के समय लड़कियों में कौन से परिवर्तन दिखाई देते हैं ?
उत्तर- यौवनारंभ के समय लड़कियों में निम्न परिवर्तन दिखाई देते है – स्तनों के आकार में वृद्धि होने लगती है । स्तनाग्र की त्वचा का रंग गहरा होने लगता है । रजोधर्म प्रारम्भ होने लगता है । त्वचा तैलीय हो जाती है , चेहरे पर मुहासे निकलने लगते हैं । श्रोणिभाग चौड़ा तथा नितम्भ भारी हो जाते हैं । आवाज महीन एवं सुरीली हो जाती है ।
Q. माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है ?
उत्तर- निषेचन के बाद युग्मनज बनता है जो धीरे – धीरे भ्रूण में विकसित होने लगता है । भ्रण गर्भाशय की भित्ति से चिपक जाता है । इस प्रक्रिया को इम्प्लांटेशन कहते हैं । भ्रूण माता के शरीर से अपना भोजन प्राप्त करता है । इसके लिए एक विशिष्ट ऊतक , जिसे प्लेसेंटा कहते हैं , होता है । यह एक तश्तरीनुमा संरचना है जो गर्भाशय की भित्ति में घुसा होता है । माता के गर्भाशय की भित्ति विलाई से बनी होती है जो गर्भाशय का क्षेत्रफल बढ़ाता है ।
Q. यदि कोई महिला कॉपर – टी का प्रयोग कर रही है तो क्या यह उसकी यौन – संचरित रोगों से रक्षा करेगा ?
उत्तर- यदि कोई महिला कॉपर – टी का प्रयोग कर रही है तो यह उसकी यौन – संचरित रोगों से रक्षा नहीं करेगा ।
Q. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन क्या लाभ हैं ?
उत्तर- अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के निम्नलिखित लाभ हैं –
1.लैंगिक जनन से जनन संतति में विविधता आती है ।
2.जीन के नए युग्मक बनते हैं जिसके कारण आनुवंशिक विविधिता का विकास होता है ।
3.नए जीवों के विकास में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है ।
Q. मानव में वृषण के क्या कार्य हैं ?
उत्तर- नर में प्राथमिक जनन अंग अंडाकार आकृति का वृषण होता है । नर में एक जोड़ी वृषण उदर गुहा के बाहर छोटे अंडानुमा मांसल संरचना में रहते हैं जिसे वृषण कोष कहते हैं । वृषण में शुक्राणु तथा टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन की उत्पत्ति होती है । वृषण कोष शुक्राणु बनने के लिए उचित ताप प्रदान करता है ।
Q. ऋतुस्राव क्यों होता है ?
उत्तर- यदि अंडाणु का निषेचन नहीं होता है तो वह एक दिन बाद नष्ट हो जाता है । गर्भाशय भी निषेचित अंडाणु को प्राप्त करने की तैयारी करता है । गर्भाशय की दीवार मोटी तथा स्पंजी हो जाती है । लेकिन निषेचन न होने पर ये धीरे – धीरे टूटती है और रुधिर व म्यूकस के रूप में योनि मार्ग से बाहर निकलती है । इस प्रक्रिया को रजोधर्म या ऋतुस्राव कहते हैं । अतः ऋतुस्राव निषेचन न होने की अवस्था में होता है ।
Q. गर्भनिरोधन की विभिन्न विधियाँ कौन – सी हैं ? या परिवार नियोजन की स्थायी विधियाँ कौन – कौन सी हैं ? किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर- गर्भनिरोधन के लिए बहुत सी विधियों का विकास किया गया है जो निम्नवत् हैं –
1.अवरोधिका विधियाँ इन विधियों में कंडोम , मध्यपट और गर्भाशय ग्रीवा आच्छद का उपयोग किया जाता है । ये मैथुन के दौरान मादा जननांग में शुक्राणुओं के प्रवेश को रोकती हैं । 2.रासायनिक विधियाँ इस प्रकार की विधि में स्त्री दो प्रकार मुखीय गोलियाँ तथा योनि गोलियाँ प्रयोग करती है । ये गोलियाँ मुख्यतः हॉर्मोन्स से बनी होती हैं जो अंडाणु को डिम्बवाहिनी नलिका में उत्सर्जन से रोकती हैं ।
3.शल्य या स्थायी विधियाँ इस विधि में पुरुष शुक्रवाहिका तथा स्त्री की शल्यक्रिया द्वारा काट या बाँध दिया जाता है । इसे क्रमशः नर नसबंदी डिम्बवाहिनी नली के छोटे – से भाग को तथा स्त्री नसबंदी कहते हैं ।
Q. एक कोशिक एवं बहुकोशिक जीवों की जनन पद्धति में क्या अंतर है ?
उत्तर- एक कोशिक जीवों में केवल एक ही कोशिका होती है । उनमें जनन के लिए अलग से कोई ऊतक या अंग नहीं होता है । अत : उनमें जनन केवल द्विविखंडन या बहुविखंडन द्वारा ही हो सकता है । कुछ जीवों जैसे यीस्ट में मुकुलन द्वारा भी जनन होता है । बहुकोशिक जीवों का शरीर बहुत – सी कोशिकाओं से बना होता है । इनमें जनन के लिए अलग से ऊतक या जनन तंत्र होते हैं । अतः इनमें जनन लैंगिक व अलैंगिक दोनों प्रकार से होता
Q. जनन किसी स्पीशीज़ की समष्टि के स्थायित्व में किस प्रकार सहायक है ?
उत्तर- अपनी जनन क्षमता का उपयोग कर जीवों की समष्टि पारितंत्र में स्थान अथवा निकेत ग्रहण करते हैं । जनन के दौरान DNA प्रतिकृति का बनना जीव की शारीरिक संरचना एवं डिजाइन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है जो उसे विशिष्ट निकेत के योग्य बनाती है । अतः किसी प्रजाति ( स्पीशीज़ ) की समष्टि के स्थायित्व का सम्बन्ध जनन से है ।
Q.गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनाने के क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर- जनन एक ऐसा प्रक्रम है जिसके द्वारा जीव अपनी समष्टि की वृद्धि करते हैं । एक समष्टि में जन्मदर एवं मृत्युदर उसके आकार का निर्धारण करते हैं । जनसंख्या का विशाल आकार बहुत लोगों के लिए चिन्ता का विषय है । इसका मुख्य कारण यह है कि बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्रत्येक व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधार लाना आसान कार्य नहीं है ।
अतः जनसंख्या की बढ़ती हुई संख्या पर नियन्त्रण रखना जरूरी है । इसलिए गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनानी चाहिए ।