Class 10th Hindi Chapter 12 Subjective Question

Q. कवि अपने को जलपात्र और मदिरा क्यों कहा है ?
उत्तर-कवि अपने को भगवान का भक्त मानता है। भक्त की महत्ता को स्पष्ट करते हुए कवि भक्त को जलपात्र और मदिरा कहा है क्योंकि जलपात्र में जिस प्रकार जल संग्रहित होकर अपनी अस्मिता प्राप्त करता है, ‘जलपात्र के माध्यम से जल का उपभोग किया जा सकता है। जलपात्र जल के सानिध्य को प्राप्त करने में सहायक होता है उसी प्रकार भगवान के लिए भक्त है। इसी तरह मदिरा पान से मन मदमस्त हो जाता है, मदिरा आनंद की अनुभूति कराता है और भगवान भी भक्त से जल मिलते हैं तब प्रसन्न हो जाते हैं, भक्ति रस के निकट आकर इससे आहलादित हो जाते हैं, ऐसा लगता है कि भक्त के बिना रहना मुश्किल हो जाता है। भक्त ही भगवान की – पहचान है। इसलिए कवि अपने को जलपात्र एवं मदिरा की संज्ञा देते हैं।

Q. आशय स्पष्ट कीजिए: “मैं तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे?”
उत्तर-प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने भक्त को भगवान की अस्मिता माना है। भगवान का वास्तविक स्वर भक्त में है। भक्त भगवान का सब कुछ है। भगवान का रूप, वेश, रंग, कार्य सब भक्त में निहित है। भक्त के माध्यम से ही भगवान को जाना जा सकता है, उनके अस्तित्व की अनुभूति किया जा सकता है। कवि कहता है कि हे भगवन मेरा अस्तित्व ही तुम्हारी पहचान है। मैं नहीं  रहूँगा तो तुम्हारी पहचान भी नहीं होगी। अर्थात् भक्त से अलग रहकर, भक्त को खोकर भगवान भी अपना अर्थ, अपना मतलब, अपनी पहचान खो देंगे। भक्त के बिना भगवान की कल्पना ही नहीं किया जा सकता।

Q. शानदार लबादा किसका गिर जाएगा और क्यों ?
उत्तर- कवि के अनुसार भगवत्-महिमा भक्त की आस्था में निहित होता है। भक्त, भगवान का दृढाधार होता है लेकिन जब भक्त रूपी आधार नहीं होगा तो स्वाभाविक है कि भगवान की पहचान भी मिट जाएगी। भगवान का लबादा अथवा चोगा गिर जाएगा। भक्त भगवान का कृपा पात्र होता है, भगवत कृपा दृष्टि भक्त पर पड़ती है। इतना ही नहीं भगवान अपने भक्तों पर गौरवान्वित होते हैं। भक्त की अस्मिता समाप्त होने से भगवान का गौरव भी मिट जाएगा। भक्त ही प्रभु का स्वरूप है।

Q. कवि किसको कैसा सुख देता था?
उत्तर-कवि भगवान की कृपा दृष्टि की शय्या है। कवि के नरम कपोलों पर जब भगवान की कृपा दृष्टि विश्राम लेती है, तब भगवान को सुख मिलता है आनंद मिलता है। अर्थात् भक्त भगवान का कृपा पात्र होता है और भक्तरूपी पात्र से भगवान भी सुखी होते हैं। भक्त के द्वारा भगवान हेतु प्रदत्त सुख की चर्चा कवि करते हैं। भक्त की प्रेम वाटिका की सुखद छाया में भगवान को जो सुख मिलता है वही सुख कवि भगवान को देता है।

Q. कवि को किस बात की आशंका है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-कवि को आशंका है कि जब ईश्वरीय सत्ता की अनुभूति करानेवाला प्रतीक आधार दर्शन है। हम नहीं समझना वा देना चाहिए। या भक्त नहीं होगा तब ईश्वर का पहचान किस रूप में होगा? प्राकृतिक छवि, मानव की हृदय का प्रेम, दया, भगवद् स्वरूप है। भक्ति की रसधारा ईश्वरीय सत्ता या परमानंद का वाहक है। सूर्य की लालिमा या सुनसान पर्वत पर ठंढी चट्टानें भगवान के स्वरूप का दर्शन कराता है। ये सब नहीं होगा तब उस परमात्मा का आश्रय क्या होगा मानव किस रूप में ईश्वर की जान सकेगा इस प्रश्न को लेकर कवि आशंकित है।

Q. कविता किसके द्वारा किसे संबोधित है? आप क्या सोचते हैं ?
उत्तर-कविता में कवि भक्त के रूप में भगवान को सम्बोधित करता है। इसमें भक्त अपने को भगवान का आश्रय, गृह स्वीकारता है। अपने में भगवान की छवि को देखता है और कहता है कि हे भगवान ! मैं भी तुम्हारे लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण हूँ जितना तुम मेरे लिए। तुम्हारे अस्तित्व का मैं वाहक हूँ। मैं तुम्हारा पहचान हूँ। मैं नहीं रहूँगा तो तुम्हारी भी कल्पना संभव नहीं है। मैं तुम्हारे लिए हूँ और तुम मेरे लिए। हम दोनों एक-दूसरे के चलते जाने जाते हैं।

कवि के इस विचार की हम पुष्टि करते हैं। हमारे विचार से भक्त ही भगवान का वास्तविक स्वरूप है। ईश्वरीय सत्ता अदृश्य है और उस अदृश्य शक्ति का दर्शन भक्त के माध्यम से संभव हो जाता है। नश्वर जीव की महत्ता कम नहीं है क्योंकि यह ईश्वरीय अंश है और व्यापक ईश्वर का साक्षात् दर्शन है। हमें भक्त और भगवान के इस संबंध को स्वीकारना चाहिए और इस यथार्थ को मानकर अपने को हीन नहीं समझना चाहिए बल्कि इस मानवीय जीवन के महत्त्व को समझते हुए इस बहुमूल्य जीवन को यों ही नहीं गवाँ देना चाहिए। इस अनमोल मानवीय जीवन को ईश्वरीय स्वरूप मानकर परमात्मा के सत्ता को स्थापित करने हेतु क्रियान्वित रहना चाहिए।

Q. मनुष्य के नश्वर जीवन की महिमा और गौरव का यह कविता कैसे बखान करती है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-इस कविता में कहा गया है कि मानव के अस्तित्व में ही ईश्वर का अस्तित्व है। मानवीय जीवन में ईश्वरीय अंश होता है। परमात्मा के अदृश्यता को जीवात्मा दृश्य करता है। ईश्वर की झलक जीव के माध्यम से देखी जाती है। इस कविता में जीव को ईश्वर का जलपात्र, मदिरा कहा गया है। साथ ही मनुष्य को भगवान का वेश, वृत्ति, शानदार लबादा कहकर मानव-जीवन की महत्ता को बढ़ाया गया है। यह जीवन नश्वर है, लघु है फिर भी गौरवपूर्ण है। इसकी महिमा ईश्वरतुल्य है, क्योंकि मनुष्य ही ईश्वरीय सत्ता का वाहक है। मनुष्य भक्त के स्वरूप में भगवान के गुणों को उजागर करता है और भगवद्-महिमा को स्थापित करता है। यहाँ तक कहा गया है कि मनुष्य रूप में भगवान का भक्त नहीं हो तो भगवान के भी होने की बात की कल्पना नहीं की जा सकती ।

Q. कविता के आधार पर भक्त और भगवान के बीच के संबंध पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-प्रस्तुत कविता में कहा गया है कि बिना भक्त के भगवान भी एकाकी और निरुपाय है। उनकी भगवत्ता भी भक्त की सत्ता पर ही निर्भर करती है। व्यक्ति और विराट सत्य एक-दूसरे पर निर्भर है। भगवान जल हैं तो भक्त जलपात्र है। भगवान के लिए भक्त मदिरा है। बिना भक्त के भगवान रह ही नहीं सकते। भक्त ही भगवान का सब कुछ हैं और भक्त के लिए भगवान सबकुछ हैं। ब्रह्म को साकार करनेवाला जीव होता है और जीव जब ब्रह्ममय हो जाता है तब वह परमानंद में डूब जाता है। भक्त के भक्ति को पाकर परमात्मा आनंदित होता है और परमात्मा को प्राप्त करके भक्त परमानंद को प्राप्त करता है। यही अन्योन्याश्रय संबंध भक्त और भगवान में

Q. “लौटकर आऊँगा फिर’ कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
मेरे बिना तुम प्रभु’ रिल्के की चर्चित कविता है। इस कविता में कवि ने बताया है कि भगवान् का अस्तित्व भक्त पर ही निर्भर है। भक्त के बिना भगवान एकांकी और निरूपाय है।
कवि कहता है कि हे प्रभु ! जंब मैं न रहूँगा तो तुम्हारा क्या होगा? तुम क्या करोगे मैं ही तो तुम्हारा जलपात्र हूँ, जिससे तुम पानी पीते हो। अगर टूट गया तो या तुम्हें जिसे नशा होता है, तो मेरे द्वारा उन्हें प्राप्त मदिरा सूख जाएगी अथवा स्वादहीन हो जाएगी दरअसल मैं ही तुम्हारा आवरण हूँ, वृत्ति हूँ। अगर नहीं रहा तो तुम्हारी महत्ता ही सामान्य हो जाएगी। मेरे प्रभु। मैं न रहा तो तुम्हारा मंदिर-मस्जिद-गिरजा कौन बनाएगा? तुम गृहहीन हो जाओगे? कौन करेगा तुम्हारी पूजा-अर्चना ? दरअसल, मैं ही तुम्हारी पादुम हूँ जिसके सहारे जहाँ जाता हूँ तुम जाते हो। अन्यथा तुम भटकोगे।

कवि पुनः कहता है कि मुझसे ही तुम्हारी शोभा है। मेरे बिना किस पर कृपा करोगे? कृपा करने का सुख कौन देगा? जानते हो प्रभु, यह-जो कहा जाता है कि सूरज का उमना-डूबना सब  प्रभु की कृपा है, वह भी मैं कहता हूँ और इस प्रकार तुम्हें सृष्टिकर्ता बताने-बनाने का कार्य भी मेरा ही है। मुझे तो आशंका होता है कि मैं न रहा तो तुम क्या करोगे?

कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि ईश्वर को मनुष्य ने ही स्वरूप दिया है। महिमा-मंडित किया है, सर्वेसर्वा बनाया है। भगवान की भगवत्ता महत्ता तथा महानता मनुष्य पर आधारित है। कहने का अर्थ यह है कि विराट सत्य और मनुष्य एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
sex positions real people best porn videos of all tome 80sporno.com a j lee naked lil nas x nude, painter of the night please fuck my wife forcedcreampie.com video pornos gratis en español mom sucks off son, mommy sucks off son mujeres y hombres que hacen el amor lesbianebony.com cory chase double penetration blow jobs by redheads
sam bankman sex tape mam and son xxx blackpornamateurs.com sofia vergara top less sexiest women with big tits, porn stars on tik.tok my gf's hot mom.does anal freepornamatuer.com rocco siffredi allie james bastard heavy metal dark fantasy hentai, swingers club las vegas gay bear porn muscle sexcollegeamateur.com kendra lust onlyfans leaked blue diamond rule 34
genshin impaxt rule 34 alexandra daddario sex scenes bbwxnnx.com slingshot ride nipple slip vendo a mi novia