Q. भारत से हम क्या सीखें का सारांश
उत्तर- प्रस्तुत शीर्षक “भारत से हम क्या सीखें।” वस्तुतः भारतीय सविल सेवा के चयनित युवा अंग्रेज अधिकारी लोगों को प्रशिक्षण के लिए मैक्समूलर साहब द्वारा दिया गया भाषण का अंश है।पश्चिम जगत् में भारत के संबंध में सही-सही ज्ञान एवं दृष्टि के प्रणेता विश्वविख्यात विद्वान फ्रेड्रिक मैक्समूलर पहला व्यक्ति थे। उन्होंने भारतीय सभ्यता-संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, संस्कृत भाषा कला-कौशल आदि का गहराई से अध्ययन किया और दुनियाँ के सामने स्पष्ट किया। स्वामी विवेकानंद ने उन्हें ‘वेदांतियों का भी वेदांती’ कहा।सर्वविध संपदा और प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण कौन-सा देश है, यदि आप मुझे इस भूमण्डल का अवलोकन करने के लिए कहें तो बताऊँगा कि वह देश है—भारत। भारत, जहाँ भूतल पर ही स्वर्ग की छटा निखर रही है। यदि यूनानी, रोमन और सेमेटिक जाति के यहूदियों की विचारधारा में ही सदा अवगाहन करते रहनेवाले हम यूरोपियनों को ऐसा कौन-सा साहित्य पढ़ना चाहिए जिससे हमारे जीवन अंतरतम परिपूर्ण अधिक सर्वांगीण, अधिक विश्वव्यापी, यूँ कहें कि संपूर्णतया मानवीय बन जाये, और यह जीवन ही क्यों, अगला जन्म तथा शाश्वत जीवन भी सुधर जाये, तो मैं एक बार फिर भारत ही का नाम लूँगा।यदि आपकी अभिरूचि की पैठ किसी विशेष क्षेत्र में है, तो उसके विकास और पोषण के लिए आपको भारत में पर्याप्त अवसर मिलेगा।यदि आप भू-विज्ञान में रूचि रखते हैं तो हिमालय से श्रीलंका तक का विशाल भू-प्रदेश आपकी प्रतीक्षा कर रहा है। यदि आप वनस्पति जगत में विचरना चाहते हैं तो भारत एक ऐसी. फुलवारी है जो हकर्स जैसे अनेक वनस्पति वैज्ञानिकों को अनायास ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है। यदि आपकी रूचि जीव-जन्तुओं के अध्ययन में है तो आपका ध्यान श्री हेकल की ओर अवश्य होगा, जो इन दिनों भारत के कान्तारों की छानबीन के साथ ही भारतीय समुद्रतट से मोती भी बने रहे हैं। यदि आप नृवंश विद्या में अभिरूचि रखते हैं तो भारत आपको एक जीता-जागता संग्रहालय ही लगेगा। यदि आप पुरातत्व प्रेमी हैं, और यदि आपने यहाँ रहते हुए पुरातत्व के द्वारा एक प्राचीन चाकू या चकमक या किसी प्राणी का कोई भाग ढूंढ़ निकालने के आनन्द का अनुभव किया हो तो आपको जनरल कनिाम की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की वार्षिक रिपोर्ट पढ़ लेनी चाहिए और तब भारत के बौद्ध सम्राटों के द्वारा निर्मित (नालन्दा जैसे) विश्वविद्यालयों अथवा विहारों के ध्वंसावशेषों को खोद निकालने के लिए आपका फावड़ा आतुर हो उठेगा।यदि आपके मन में पुराने सिक्कों के लिए लगाव है, तो भारतभूमि में ईरानी, केरियन, थेसियन, पार्थियन, यूनानी, मेकेडिनियन, शकों, रोमन और मुस्लिम शासकों के सिक्के प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होंगे। दैवत विज्ञान पर भारत के प्राचीन वैदिक दैवत विज्ञान के कारण जो नया प्रकाश पड़ा है, उसके फलस्वरूप संपूर्ण दैवत विज्ञान को नया स्वरूप प्राप्त हो गया है। ”नीति कथाओं के अध्ययन क्षेत्र में भी भारत के कारण नवजीवन का संचार हो चुका है, क्योंकि भारत के कारण ही समय-समय पर नानाविध साधनों और मार्गों के द्वारा अनेक नीति कथाएँ पूर्व से पश्चिम की ओर आती रही हैं।
आपमें से कइयो ने भाषाओं को हीन नहीं, भाषा विज्ञान का भी अध्ययन किया होगा। तो आपको क्या भारत से बढ़कर दूसरा कोई देश दिखाई देता है जहाँ केवल शब्दों का ही नहीं, बल्कि व्याकरणात्मक तत्त्वों के विकास और लय से संबद्ध भाषावैज्ञानिक समस्याओं के अध्ययन का । महत्त्वपूर्ण अवसर प्राप्त हो सके यदि आप विधिशास्त्र या कानून के विद्यार्थी हैं तो आपको विधि-संहिताओं के एक ऐसे इतिहास की जाँच-पड़ताल का अवसर मिलेगा जो यूनान, रोम या जर्मनी के ज्ञात विधिशास्त्रों के इतिहास से सर्वथा भिन्न होते हुए भी इनके साथ समानताओं और विभिन्नताओं के कारण विधिशास्त्र के किसी भी विद्यार्थी के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है।यदि आप लोगों को अत्यंत सरल राजनैतिक इकाइयों के निर्माण और विकास से संम्बद्ध प्राचीन युग के कानून के पुरातन रूपों के बारे में इधर जो अनुसंधान हुए हैं, उनके महत्त्व और वैशिष्ट्य को परख सकने की क्षमता प्राप्त करनी है, तो आपको इसके लिए आज भारत की ग्राम पंचायतों के रूप में इसके प्रत्यक्ष दर्शन का सुयोग अनायास ही मिल जाएगा। भारत में प्राचीन स्थानीय शासन प्रणाली या पंचायत प्रथा को समझने-समझाने का बहुत बड़ा क्षेत्र विद्यमान है। भारत ब्राह्मण या वैदिक धर्म की भूमि है, बौद्धधर्म जन्मस्थली है। पारसियों के जखुस्त धर्म की यह शरणस्थली है। आज भी यहाँ नित्य नये मत-मतान्तर प्रकट व विकसित होते रहते हैं।संस्कृत की सबसे पहली विशेषता है इसकी प्राचीनता क्योंकि हम जानते हैं कि ग्रीक भाषा से भी संस्कृत का काल पुराना है। संस्कृत में चूहा को मूषः कहते हैं। ग्रीक में मूस, लैटिन में मुस, पुरानी स्लावोनिक में माइस और पुरानी उच्च जर्मन में मुस कहते हैं।
‘मैं हूँ’ जैसे भाव को व्यक्त करने के लिए भला किन्हीं दूसरी भाषाओं में ‘अस्मि’ जैसा । शुद्ध और उपयुक्त शब्द कहाँ मिल पाएगा।
. मैं इसे ही वास्तविक अर्थों में इतिहास मानता हूँ और यह एक ऐसा इतिहास है जो राज्यों के दुराचारों और अनेक जातियों की क्रूरताओं की अपेक्षा कहीं अधिक ज्ञातव्य और पठनीय है। हम सब पूर्व से आये हैं। हमारे जीवन में जो भी कुछ अत्यधिक मूल्यवान है, वह हमें पूर्व से मिला है और पूर्व को पहचान लेने से ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को जिसने इतिहास की वास्तविक शिक्षा कुछ लाभ उठाया है, भले ही वह प्राच्य-विद्या-विशारद न भी हो तो भी यह अनुभव अवश्य होगा कि वह नानाविध स्मृतियों से भरे अपने पुराने घर की ओर जा रहा है। यदि आप लोग चाहें तो भारत के बारे में वैसे ही सुनहरे सपने देख सकते हैं और भारत पहुँचने के बाद एक से बढ़कर एक शानदार काम भी कर सकते हैं।
Q. भारत को पहचान सकने वाली दृष्टि की आवश्यकता किनके लिए वांछनीय है और क्यों?
उत्तर- भारत को पहचान करने वाली दृष्टि भारतीय सविल सेवा हेतु चयनित युवा अंग्रेज अधिकारियों के लिए है। भारत में पहुंचने के बाद वहाँ से ज्ञान, सामाजिक व्यवस्थाएँ, विज्ञान आदि का संग्रह और उन्नयन करने की दृष्टि हो। सर विलियम जोन्स की तरह नए युवा अधिकारी भी स्वप्नदर्शी हों और गंगा, सिन्धु के मैदानों में संग्रहणीय वस्तु एवं विद्या इंगलैण्ड लावें।
Q. लेखक ने किन विशेष क्षेत्रों में अभिरूचि रखने वाले के लिए भारत का प्रत्यक्ष ज्ञान आवश्यक बताया है ?
उत्तर- लेखक ने कहा है कि आपकी अभिरूचि की पैठ किसी विशेष क्षेत्रों में है तो भारत में आपको पर्याप्त अवसर मिलेंगे। लोकप्रिय शिक्षा से सम्बद्ध हो, या उच्च शिक्षा, चाहे संसद में प्रतिनिधित्व की बात हो अथवा कानून बनाने की बात हो, चाहे प्रवास संबंधी कानून हो अथवा अन्य कोई कानूनी मसला, सीखने या सिखाने योग्य कोई बात क्यों न हो, भारत के रूप में आपको ऐसी प्रयोगशाला मिलेगी। जैसे-विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं मिल सकती।
Q. लेखक की दृष्टि में सच्चे भारत के दर्शन कहाँ हो सकते हैं और क्यों ?
उत्तर-लेखक की दृष्टि में सच्चे भारत के दर्शन गाँवों में हो सकते हैं। भारत की सारी परंपरा का आधार ऋषि और कृषि पद्धति है। गाँव में ग्राम पंचायत व्यवस्था देखने को मिलेंगे। कृषि व्यवस्था मंदिर व्यवस्था आदि। जो केवल में मौलिक रूप से देखने को नहीं मिलेंगे।
Q. भारत के ग्राम पंचायतों को किस अर्थ में और किनके लिए लेखक ने महत्त्वपूर्ण बतलाया है ? स्पष्ट करें।
उत्तर- लेखक युवा अंग्रेज अधिकारी जो भारतीय सिविल सेवा हेतु चयनित हुए थे उनके लिए भारत के ग्राम पंचायतों का महत्त्वपूर्ण अर्थ बतलाया है। – अत्यंत सरल राजनैतिक इकाइयों के निर्माण और विकास से सम्बद्ध प्राचीन युग के कानून की पुरातन रूपों के बारे में इधर जो अनुसंधान हुए हैं, उनके महत्त्व और वैशिष्ट्य को परख सकने की क्षमता प्राप्त करनी है, तो आपको इसके लिए आज भारत की ग्राम पंचायतों के रूप में इसके प्रत्यक्ष दर्शन का सुयोग अनायास ही मिल जाएगा।
Q. लेखक ने वारेन हेस्टिंग्स से संबंधित किस दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना का हवाला दिया है और क्यों ?
उत्तर- वारेन हेस्टिंग्स को वाराणसी के पास 172 दारिस नामक सोने के सिक्कों से भरा एक घड़ा मिला था। उन्होंने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के निदेशक मंडल की सेवा में सोने के सिक्के यह समझकर भिजवा दिया कि यह एक ऐसा उपहार होगा जिसकी गणना उसके द्वारा प्रेषित सर्वोत्तम दुर्लभ वस्तुओं में की जाएगी। कंपनी के निदेशक उसका ऐतिहासिक महत्त्व नहीं समझ पाये और उन मुद्राओं को गला डाला। वारेन हेस्टिंग्स के लिए सबसे बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण घटना था। फिर वह सोचा कि आगे से सावधानी रहे कि ऐतिहासिक वस्तुओं को बचाया जाय।
Q.भारत के साथ यूरोप के व्यापारिक संबंध के प्राचीन प्रमाण लेखक ने क्या दिखाए हैं?
उत्तर- लेखक के अनुसार यह असंदिग्ध रूप से प्रमाणित हो चुका है कि सोलोमन के समय में ही भारत, सीरिया और फिलीस्तीन के मध्य आवागमन के साधन सुलभ हो चुके थे। साथ ही . इन देशों के व्यापारिक अध्ययन करने पर कुछ संस्कृत शब्दों का प्रयोग मिलता है। इन संस्कृत शब्दों के आधार पर प्रमाणित होता है कि हाथी-दाँत, बन्दर, मोर और चन्दन आदि जिन वस्तुओं के ऑफिसर से निर्यात की बात बाइबिल में कही गयी है, वे वस्तुएँ भारत के सिवा किसी अन्य देश से नहीं लाई जा सकती। ऐतिहासिक अध्ययन से यह भी ज्ञात है कि दसवीं-ग्यारहवीं सदी में भी भारत के साथ यूरोप के व्यापारिक सम्बन्ध बंद नहीं हुए थे।
Q. भारत किस तरह अतीत और सुदूर भविष्य को जोड़ता है ? स्पष्ट करें।
उत्तर- भारत में आप अपने-आपको सर्वत्र अत्यन्त प्राचीन और सुदूर भविष्य के बीच खड़ा पायेंगे। वहाँ आपको ऐसे सुअवसर भी मिलेंगे जो किसी पुरातन विश्व में ही सुलभ हो सकते हैं। आप आज की किसी भी ज्वलंत समस्या को ले लीजिए। वह समस्या चाहे लोकप्रिय शिक्षा से सम्बद्ध हो, या उच्च शिक्षा, चाहे संसद में प्रतिनिधित्व की बात हो अथवा कानून बनाने की बात हो, चाहे प्रवास संबंधी कानून हो अथवा अन्य कोई कानूनी मसला, सीखने या सिखाने योग्य कोई बात क्यों न हो, भारत के रूप में आपको ऐसी प्रयोगशाला मिलेगी जैसे विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं मिल सकता।
Q. मैक्समूलर ने संस्कृत की कौन-सी विशेषताएँ और महत्त्व बतलाये हैं ?
उत्तर- संस्कृत की सबसे पहली विशेषता है इसकी प्राचीनता, क्योंकि हम जानते हैं कि ग्रीक भाषा से भी संस्कृत का काल पुराना है। ज्यों ही इन भाषाओं के बीच में संस्कृत आ बैठी कि तत्काल लोगों को एक सही प्रकाश और गर्मी का अहसास होने लगा, और इसी से भाषाओं का पारस्परिक संबंध भी स्पष्ट हो गया। निश्चित ही संस्कृत इन सब भाषाओं की अग्रजा है।
Q. संस्कृत और दूसरी भारतीय भाषाओं के अध्ययन से पश्चात्य जगत् को प्रमुख लाभ क्या-क्या हुए?
उत्तर- संस्कृत और दूसरी भारतीय भाषाओं के अध्ययन के पश्चात् मानव जाति के बारे में हमारे विचार व्यापक और उदार ही नहीं बने हैं तथा लाखों-करोड़ों अजनबियों तथा वर्बर समझे जानेवाले लोगों का भी अपने ही परिवार के सदस्य की भाँति गले लगाना ही नहीं सीखे हैं, अपितु इसने मानव जाति के संपूर्ण इतिहास को एक वास्तविक रूप से प्रकट कर दिखाया है, जो पहले नहीं हो पाया था।
Q. धर्मों की दृष्टि से भारत का क्या महत्त्व है?
उत्तर- भारत प्राचीन काल से ही धार्मिक विकास का केन्द्र रहा है। यहाँ धर्म के वास्तविक उद्भव उसके प्राकृतिक विकास तथा उसके अपरिहार्य क्षीयमाण रूप का प्रत्यक्ष परिचय मिलता है। भारत वैदिक धर्म की भूमि है, बौद्ध धर्म की यह जन्मभूमि है, पारसियों के जरथुस्ट्र धर्म की यह शरण-स्थली है। आज भी यहाँ नित्य नये मत-मतान्तर प्रकट एवं विकसित होते रहते हैं। इस तरह से भारत धार्मिक क्षेत्र में विश्व को आलोकित करनेवाला एक महत्त्वपूर्ण देश है।
Q. लेखक ने नया सिकंदर किसे कहा है ? ऐसा कहना क्या उचित है ? लेखक का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- लेखक ने नया सिकंदर भारत को समझने, जानने एवं सम्पूर्ण लाभ प्राप्त करने हेतु भारत आनेवाले नवागंतुक, अन्वेषकों, पर्यटकों एवं अधिकारियों को कहा है। भारत विजय का सिकंदर ने स्वप्न देखा था। उसी प्रकार आज भी भारतीयता को निकट से जानने के नवीन स्वप्नदर्शी को आज का सिकंदर कहना अतिशयोक्ति नहीं है, यह उचित है। लेखक ने कहा है कि नए सिकंदर को यह सोचकर निराश नहीं हो जाना चाहिए कि गंगा और सिंध के पुराने मैदानों में अब उसके विजय करने के लिए कुछ भी शेष नहीं रहा। आज भी अध्ययन, शोध, विश्व की विविध प्राचीनतम ज्ञान, विकास सूत्र, प्राच्य देशों के इतिहास और साहित्य के क्षेत्र में एक से बढ़कर एक शानदार बड़ी-बड़ी अनेक विजय प्राप्त की जा सकती हैं। विश्व के सर्वांगीण विकास हेतु आज भी भारतीयता के सम्यक् ज्ञान की आवश्यकता को लेखक ने अनिवार्य बताया है। साथ-ही भारत में असीम संभावनाओं पर बल दिया है।
Q. संस्कृत और दूसरी भारतीय भाषाओं के अध्ययन से पश्चात्य जगत् को प्रमुख लाभ क्या-क्या हुए?
उत्तर- संस्कृत और दूसरी भारतीय भाषाओं के अध्ययन के पश्चात् मानव जाति के बारे में हमारे विचार व्यापक और उदार ही नहीं बने हैं तथा लाखों-करोड़ों अजनबियों तथा वर्बर समझे जानेवाले लोगों का भी अपने ही परिवार के सदस्य की भाँति गले लगाना ही नहीं सीखे हैं, अपितु इसने मानव जाति के संपूर्ण इतिहास को एक वास्तविक रूप से प्रकट कर दिखाया है, जो पहले नहीं हो पाया था।
Q. लेखक ने नीतिकथाओं के क्षेत्र में किस तरह भारतीय अवदान को रेखांकित किया है?
उत्तर- लेखक ने बताया है कि नीति कथाओं के अध्ययन-क्षेत्र में नवजीवन का संचार हुआ है। समय-समय पर विविध साधनों और मार्गों द्वारा अनेक नीति कथाएँ पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित रही हैं। भारत में प्रचलित कहावतों और दन्तकथाओं का प्रमुख स्रोत बौद्ध धर्म को माना जाने लगा है, किन्तु इसमें निहित समस्याएँ समाधान की प्रतीक्षा में हैं। लेखक ने एक उदाहरण देकर बताया है कि ‘शेर की खाल में गदहा’ वाली कहावत सबसे पहले यूनानी दार्शनिक प्लेटो के क्रटिलस में मिलती है। इसी तरह संस्कृत की एक कथा यूनान के एक नीति कथा से मिलती है। अर्थात् भारतीय नीति कथाएँ यूनान से कैसे जुड़ी यह एक शोध का विषय है।
Q. भारत किस तरह अतीत और सुदूर भविष्य को जोड़ता है ? स्पष्ट करें।
उत्तर- भारत में आप अपने-आपको सर्वत्र अत्यन्त प्राचीन और सुदूर भविष्य के बीच खड़ा पायेंगे। वहाँ आपको ऐसे सुअवसर भी मिलेंगे जो किसी पुरातन विश्व में ही सुलभ हो सकते हैं। आप आज की किसी भी ज्वलंत समस्या को ले लीजिए। वह समस्या चाहे लोकप्रिय शिक्षा से सम्बद्ध हो, या उच्च शिक्षा, चाहे संसद में प्रतिनिधित्व की बात हो अथवा कानून बनाने की बात हो, चाहे प्रवास संबंधी कानून हो अथवा अन्य कोई कानूनी मसला, सीखने या सिखाने योग्य कोई बात क्यों न हो, भारत के रूप में आपको ऐसी प्रयोगशाला मिलेगी जैसे विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं मिल सकता।