Q.आविन्यों लेखक परिचय?
उत्तर-अशोक वाजपेयी का जन्म 16 जनवरी 1941 ई० में दुर्ग, छत्तीसगढ़ में हुआ, किंतु उनका ‘ मूल निवास सागर, मध्यप्रदेश है । उनकी माता का नाम निर्मला देवी और पिता का नाम परमानंद वाजपेयी है । उनकी प्रारंभिक शिक्षा गवर्नमेंट हायर सेकेंड्री स्कूल, सागर से हुई । फिर सागर विश्वविद्यालय से उन्होंने बी० ए० और सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली से अंग्रेजी में एम० ए० किया। उन्होंने वृत्ति के रूप में भारतीय प्रशासनिक सेवा को अपनाया । वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के कई पदों पर रहे और महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति पद से सेवानिवृत्त हुए । संप्रति, वे दिल्ली में भारत सरकार की कला अकादमी के निदेशक हैं।
अशोक वाजपेयी की लगभग तीन दर्जन मौलिक और संपादित कृतियाँ प्रकाशित हैं। ‘शहर अब भी संभावना है’, एक पतंग अनंत में’, ‘तत्पुरुष’, ‘कहीं नहीं वहीं’, ‘बहुरि अकेला’, थोड़ी सी जगह’, ‘दुख चिट्ठीरसा है’ आदि उनके कविता संकलन हैं । ‘फिलहाल, ‘कुछ पूर्वग्रह’, ‘समय से बाहर’,’कविता का गल्प’, ‘कवि कह गया है’ आदि उनकी आलोचना की पुस्तकें हैं । उनके द्वारा संपादित पुस्तकों की सूची भी लंबी है – ‘तीसरा साक्ष्य’, ‘साहित्य विनोद’, ‘कला विनोद’, ‘कविता का जनपद’, मुक्तिबोध, शमशेर और अज्ञेय की चुनी हुई कविताओं का संपादन आदि। उन्होंने कई पत्रिकाओं का भी संपादन किया है जिनमें ‘समवेत’, ‘पहचान’, ‘पूर्वग्रह’, ‘बहुवचन’ ‘कविता एशिया’, ‘समास’ आदि प्रमुख हैं । अशोक वाजपेयी को साहित्य अकादमी पुरस्कार दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान, फ्रेंच सरकार का ऑफिसर आव् द आर्डर आव् क्रॉस 2004 सम्मान आदि प्राप्त हो चुके हैं।
Q. आविन्यों का सारांश?
उत्तर-लगभग दस बरस पहले पहली बार आविन्यों गया था। दक्षिण फ्रांस में रोन नदी के किनारे बसा एक पुराना शहर है जहाँ कमी कुछ समय के लिए पोप राजधानी थी और अब गर्मियों में फ्रांस ओर यूरोप का एक अत्यन्त प्रसिद्ध और लोकप्रिय रंग-समारोह हर बरस होता है। उस बरस वहाँ भारत केन्द्र में था। पीटर ब्रुक का विवादास्पद ‘महाभारत’ पहले पहल प्रस्तुत किया जानेवाला था और उन्होंने मुझे निमंत्रण भेजा था।
रोन नदी के दूसरी ओर आविन्यों का एक हिस्सा है जो लगभग स्वतंत्र है। नाम है वीलनव्वल आविन्यों-वहाँ दरअसल फ्रेंच शासकों ने पोप की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किला बनवाया था। उसी में काथूसियन सम्प्रदाय का एक ईसाई मठ बना ला शत्रूज। चौदहवीं सदी से फ्रेंच क्रांति तक उसका धार्मिक उपयोग होता रहा। अब इसमें एक कलाकेन्द्र स्थापित है। यह केन्द्र इन दिनों रंगमंच और लेखन से जुड़ा हुआ है।
मेरा प्रवास वहाँ उन्नीस दिन का था, 24 अक्टूबर से 10 नवम्बर 1994 की दोपहर तक। कुल उन्नीस दिनों में पैंतीस कविताएँ और सत्ताईस गद्य रचनाएँ लिखी गई। आविन्यों फ्रांस का एक प्रमुख कलाकेन्द्र रहा है। पिकासो की विख्यात कृति का शीर्षक है ‘लमादामोजेल द आविन्यों’
Q. आविन्यों क्या है और वह कहाँ अवस्थित है?
उत्तर- आविन्यों एक स्थान का नाम है। दक्षिण फ्रांस में रोन नदी के किनारे बसा एक पुराना शहर है। ।
Q. बरस आविन्यों में कब और कैसा समारोह हुआ करता है ?
उत्तर-गर्मियों में फ्रांस और यूरोप का एक अत्यन्त प्रसिद्ध और लोकप्रिय रंग-समारोह हर बरस होता है।
Q. लेखक आविन्यों किस सिलसिले में गए थे ? वहाँ उन्होंने क्या देखा-सुना?
उत्तर-पीटर ब्रुके का विवादास्पद ‘महाभारत’ पहले पहल प्रस्तुत किया जाने वाला था। उसी के निमन्त्रण पर लेखक आविन्यों गये थे। वहाँ उन्होंने देखा कि समारोह के दौरान वहाँ के अनेक चर्च और पुराने स्थान रंगस्थलियों में बदल जाते हैं।
Q. ला शबूज क्या है और वह कहाँ अवस्थित है ? आजकल उसका क्या उपयोग होता है?
उत्तर- दरअसल फ्रेंच शासकों ने पोप की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किला बनवाया था। यह आविन्यों में है। उसमें एक कलाकेन्द्र की स्थापना की गई है। यह केन्द्र इन दिनों रंगमंच और लेखन से जुड़ा हुआ है।
Q. ला शत्रूज का अंतरंग विवरण अपने शब्दों में प्रस्तुत करते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि लेखक ने उसके स्थापत्य को ‘मौन का स्थापत्य’ क्यों कहा है ?
उत्तर-ला शत्रूज फ्रेंच शासकों द्वारा निर्मित किला में काथूसियन सम्प्रदाय का एक ईसाई मठ है। उसके भीतरी भाग में ईसाई सन्तों के चैम्बर्स बने हुए हैं। दो-दो कमरों के चैम्बर सुसज्जित हैं। चौदहवीं सदी के फर्नीचर लगे हैं। चैम्बरों के मुख्य द्वार कब्रगाह के चारों ओर बने गलियारों में खुलते हैं। कार्थसियन सम्प्रदाय मौन में विश्वास करता है। उसके द्वारा ला शत्रूज में सारा स्थापत्य मौन का ही स्थापत्य है। अतः लेखक ने इसे ‘मौन का स्थापत्य’ की संज्ञा दी है।
Q. लेखक आविन्यों क्या साथ लेकर गए थे और वहाँ कितने दिनों तक रहे ? लेखक की उपलब्धि क्या रही?
उत्तर- लेखक आविन्यों अपने साथ हिन्दी का टाइपराइटर, तीन चार पुस्तकें और कुछ संगीत के टेप्स लेकर गए थे और वहाँ वे उन्नीस दिन 24 अक्टूबर से 10 नवम्बर, 1994 की दोपहर तक रहे। कुल उन्नीस दिनों में वहाँ रहकर उन्होंने पैंतीस कविताएँ और सत्ताईस गद्य की रचना की।
Q. ‘प्रतीक्षा करते हैं पत्थर’ शीर्षक कविता में कवि क्यों और कैसे पत्थर का मानवीकरण करता है ?
उत्तर- कवि महोदय का एकान्त वास मौन में विश्वास रखने वाले सम्प्रदाय के स्थान में था। उनके ऊपर भी मौन साधना का प्रभाव हुआ। वे एकाएक मौन रूप से प्रतीक्षा कर रहे पत्थर को ही मानवीकरण कर डाला।
Q. आविन्यों के प्रति लेखक कैसे अपना सम्मान प्रदर्शित करते हैं ?
उत्तर-वे सुन्दर, निविड़, सघन, सुनसान दिन और रातें थीं, भय, पवित्रता और आसक्ति से भरी हुई। यह पुस्तक उन सबकी स्मृति का दस्तावेज है। आविन्यों को उसी के मठ में रहकर लिखी गई, कवि प्रजति भी। जो पाया उसके लिए गहरी कृतज्ञता मन में है।
Q. मनुष्य जीवन से पत्थर की क्या समानता और विषमता है ?
उत्तर- मानवीय जीवन में सुख और दुःख के समय व्यतीत होते हैं। जीवन परिवर्तनशील पथ पर अग्रसर होता है। मानव उतार-चढ़ाव देखता है। पत्थर भी मानव की तरह परिवर्तनशील समय का सामना करता है। पत्थर भी शीत और ताप दोनों का सान्निध्य पाता है। मानव अपनी प्राचीन गाथा को गाता है। पत्थर भी प्राचीनता को अपने में सहेजे रखता है। मानव अपनी भावनाओं को प्रकट करता है। अपने अनुभव को व्यक्त करता है। परन्तु पत्थर मूक रहता है। हर स्थिति से गुजरते हुए अभिव्यक्त नहीं करता है। मनुष्य की कविता में शब्द होते हैं लेकिन पत्थर निःशब्द कविता रचता है। मनुष्य झुककर नमन करता है लेकिन पत्थर बिना माथा झुकाए प्रार्थना करता है। इस प्रकार मनुष्य जीवन से पत्थरों की समानता और विषमता दोनों है।
Q. इस कविता से आप क्या सीखते हैं।
उत्तर- इस कविता से हमलोग सीखते हैं कि अपने लक्ष्य के प्रति मौन रहकर कर्म करना। अनेक प्रकार के झंझावातों को सहन करते हुए लक्ष्य को प्राप्त करना।
Q. नदी के तट पर बैठे हुए लेखक को क्या अनुभव होता है ?
उत्तर- नदी के तट पर बैठे हुए लेखक को लगता है कि जल स्थिर है और तट ही बह रहा है। उन्हें अनुभव हो रहा है कि वे नदी के साथ बह रहे हैं। नदी के पास रहने से लगता है कि स्वयं नदी हो गये हैं। स्वयं में नदी की झलक देखते हैं।
Q. नदी तट पर लेखक को किसकी याद आती है और क्यों ?
उत्तर- नदी तट पर लेखक को विनोद कुमार शुक्ल की एक कविता याद आती है। क्योंकि लेखक नदी तट पर बैठकर अनुभव करते हैं कि वे स्वयं नदी हो गये हैं। इसी बात की पुष्टि करते हुए शुक्ल जी ने “नदी-चेहरा लोगों” से मिलने जाने की बात कहते हैं। उनकी रचना लेखक को प्रासंगिक लगी। अतः लेखक को शुक्ल की कविता याद आती है।
Q. नदी और कविता में लेखक क्या समानता पाता है ?
उत्तर- जिस प्रकार नदी सदियों से हमारे साथ रही है उसी प्रकार कविता भी मानव की जीवन-संगिनी रही है। नदी में विभिन्न जगहों से जल आकर मिलते हैं और वह प्रवाहित होकर सागर में समाहित होते रहते हैं। हर दिन सागर में समाहित होने के बावजूद उसमें जल का टोटा नहीं पड़ता। कविता में भी विभिन्न विडम्बनाएँ, शब्द भंगिमाओं, जीवन छवियाँ और प्रतीतियाँ आकर मिलती हैं और तदाकार होती रहती हैं। जैसे नदी जल-रिक्त नहीं होती, वैसे ही कविता शब्द-रिक्त नहीं होती। इस प्रकार नदी और कविता में लेखक अनेक समानता पाता है।
Q. किसके पास तटस्थ रह पाना संभव नहीं हो पाता और क्यों?
उत्तर-नदी और कविता के पास रहकर तटस्थ रह पाना संभव नहीं है। नदी किसी को अनदेखा नहीं करती वह सबको भिगोती है, अपने साथ करती है। कविता में भी न जाने कहाँ से कैसी-कैसी बिम्बमालाएँ शब्द भंगिमाएँ, जीवन छवियाँ और प्रतीतियाँ आकर मिलती और तदाकार होती रहती हैं। हम इसकी अभिभूति से बच नहीं सकते।
भाषा की बात
Q. निम्नांकित के लिंग-निर्णय करते हुए वाक्य बनाएं उत्तर-आवास आवास पुराना है।
उत्तर-
बन्दिश = बन्दिश याद है।
इमारत = इमारत पुरानी है।
रंगकर्मी = रंगकर्मी आते हैं।
अवधि = अवधि लंबी है।
नहानघर = नहानघर आधुनिक है।
ऑगन = ऑगन बड़ा है।
आसक्ति = आसक्ति बढ़ गई है।
प्रणति = प्रणति किया जाता है।
Q. निम्नांकित के समास-विग्रह करते हुए भेद बताएँ
उत्तर-
यथासंभव = संभव भर (अव्ययीभाव)
पहले-पहल = पहला-पहला (अव्ययीभाव)
लोकप्रिय = लोगों में प्रिय (सप्तमी तत्पुरूष)
रंगकर्मी = नाटक करने वाला (कर्मधारय)
पचासेक = पचास का समूह (द्विगु)
कवियित्री = कविता करने वाली (कर्मधारय)
कविप्रणति = कवि का प्रणम (षष्ठी तत्पुरूष)
प्रतीक्षारत = प्रतीक्षा में रत (सतत्पुरूष)
अपलक = न पलक (नब्)
तदाकार = वस्तु के आकार (षष्ठी तत्पुरूष)
Q. पाठ से अहिन्दी स्रोत के शब्द एकत्र कीजिए।
उत्तर-
आविन्यों, रोन, पीटर बुक, आर्कबिशप, वीलननव्व, कार्यसियन, ला शत्रूज, चैम्बर्स, डिपार्टमेंटल स्टोर, रेस्तराँ, ल मादामोजेल द आविन्यों, आन्द्रे ब्रेता, रेने शॉ, पालएलुआर, आदि।
Q. निम्नलिखित शब्दों के वचन बदलें।
उत्तर-
रंगकर्मी = रंगकर्मियों
कविताएँ = कविता
उसकी = उसके
सामग्री = सामग्रियों
अनेक = एक
सुविधा = सुविधाएँ
अवधि = अवाधियों
पीड़ा = पीड़ाएँ
पत्तियाँ = पत्ती
यह = यें
गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण-संबंधी प्रश्नोत्तर
1. लगभग दस-बरस पहले पहली बार आविन्यों गया था। दक्षिण फ्रांस में रोन नदी के किनारे बसा एक पुराना शहर है जहाँ कभी कुछ समय के लिए पोप की राजधानी थी और अब गर्मियों में फ्रांस और यूरोप का एक अत्यन्त प्रसिद्ध और लोकप्रिय रंग-समारोह हर बरस होता है। उस बरस वहाँ भारत केन्द्र में था। पीटर ब्रुक का विवादास्पद ‘महाभारत’ पहले पहल प्रस्तुत किया जानेवाला था और उन्होंने मुझे निमंत्रण भेजा था। पत्थरों की एक खदान में, आविन्यों से कुछ मिलीमीटर दूर, वह भव्य प्रस्तुति हुई थी; सच्चे अर्थों में महाकाव्यात्मक। कुछ दिनों और ठहरा रहा था-कुमार गन्धर्व आए थे और उन्होंने एक आर्कबिशप के पुराने आवास के बड़े से आँगन में गया था। एक बन्दिश भी याद है : द्रुमद्रुम लता-लता। इस समारोह के दौरान वहाँ के अनेक चर्च और पुराने स्थान रंगस्थलियों में बदल जाते हैं।
Q.
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक पहली बार आविन्यों कब गया था?
(ग) आविन्यों क्या है और यह किस देश में है ?
(घ) आविन्यों आने का निमन्त्रण लेखक को किसने भेजा था और वहाँ पहले-पहल किसकी प्रस्तुति थी?
(ङ) लेखक ने किनके आने की बात कही है और वह कहाँ गया था?
(च) लेखक को कौन-सा बन्दिश याद है तथा उनके अनुसार समारोह की क्या विशेषता होती है?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम – आविन्यों।
लेखक का नाम – अशोक वाजपेयी।
(ख) लेखक लगभग दस बरस पहले पहली बार आविन्यों गया था।
(ग) आविन्यों रोन नदी के किनारे बसा एक पुराना शहर है। यह दक्षिण फ्रांस में है। ।
(घ) लेखक को आविन्यों आने का निमन्त्रण पीटर ब्रुक ने भेजा था। वहाँ पीटर बुक का विवादास्पद ‘महाभारत’ पहले-पहल प्रस्तुत किया जाने वाला था।
(ङ) लेखक ने, कुमार गंधर्व को आने की बात कही है और उन्होंने एक आर्कबिशप के पुराने आवास के बड़े से आँगन में गया था।
(च) लेखक को एक बन्दिश याद है-“द्रुम द्रुम लता-लता”। इस समारोह के दौरान वहाँ । के अनेक चर्च और पुराने स्थान रंग-स्थलियों में बदल जाते हैं।